श्री रामजी द्वारा सुबेल पर्वत से बाण चलाना और लंका में रावण के मुकुट-छत्रादि को गिरना🐦जय श्री राम🐦

 प्रभु मुसुकान समुझि अभिमाना।

       चाप चढ़ाव बान संधाना॥🚩


श्री रामजी द्वारा सुबेल पर्वत से बाण चलाना और लंका में रावण के मुकुट-छत्रादि को गिरना🐦जय श्री राम🐦



कहत विभीषन सुनहू कृपाला। 

        होइ न तड़ित न बारिद माला॥

लंका सिखर उपर आगारा। 

     तहँ दसकंधर देख अखारा॥🚩


भावार्थ : विभीषण बोले- हे कृपालु! सुनिए, यह न तो बिजली है, न बादलों की घटा। लंका की चोटी पर एक महल है। दशग्रीव रावण वहाँ (नाच-गान का) अखाड़ा देख रहा है॥🚩


 छत्र मेघडंबर सिर धारी। 

     सोइ जनु जलद घटा अति कारी॥

मंदोदरी श्रवन ताटंका। 

     सोइ प्रभु जनु दामिनी दमंका॥🚩


भावार्थ : रावण ने सिर पर मेघडंबर (बादलों के डंबर जैसा विशाल और काला) छत्र धारण कर रखा है। वही मानो बादलों की काली घटा है। मंदोदरी के कानों में जो कर्णफूल हिल रहे हैं, हे प्रभो! वही मानो बिजली चमक रही है॥🚩


 बाजहिं ताल मृदंग अनूपा।

     सोइ रव मधुर सुनहू सुरभूपा।

प्रभु मुसुकान समुझि अभिमाना।

       चाप चढ़ाव बान संधाना॥🚩


भावार्थ : हे देवताओं के सम्राट! सुनिए, अनुपम ताल मृदंग बज रहे हैं। वही मधुर (गर्जन) ध्वनि है। रावण का अभिमान समझकर प्रभु मुस्कुराए। उन्होंने धनुष चढ़ाकर उस पर बाण का सन्धान किया॥🚩



दोहा :

छत्र मुकुट तांटक तब हते एकहीं बान।

सब कें देखत महि परे मरमु न कोऊ जान॥🚩


भावार्थ : और एक ही बाण से (रावण के) छत्र-मुकुट और (मंदोदरी के) कर्णफूल काट गिराए। सबके देखते-देखते वे जमीन पर आ पड़े, पर इसका भेद (कारण) किसी ने नहीं जाना॥🚩


 अस कौतुक करि राम सर प्रबिसेउ आई निषंग।

रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग॥🚩


भावार्थ : ऐसा चमत्कार करके श्री रामजी का बाण (वापस) आकर (फिर) तरकस में जा घुसा। यह महान्‌ रस भंग (रंग में भंग) देखकर रावण की सारी सभा भयभीत हो गई॥🚩




चौपाई :

कंप न भूमि न मरुत बिसेषा। 

     अस्त्र सस्त्र कछु नयन न देखा।

सोचहिं सब निज हृदय मझारी। 

      असगुन भयउ भयंकर भारी॥🚩


भावार्थ : न भूकम्प हुआ, न बहुत जोर की हवा (आँधी) चली। न कोई अस्त्र-शस्त्र ही नेत्रों से देखे। (फिर ये छत्र, मुकुट और कर्णफूल जैसे कटकर गिर पड़े?) सभी अपने-अपने हृदय में सोच रहे हैं कि यह बड़ा भयंकर अपशकुन हुआ!॥🚩


दसमुख देखि सभा भय पाई। 

     बिहसि बचन कह जुगुति बनाई।

सिरउ गिरे संतत सुभ जाही। 

      मुकुट परे कस असगुन ताही॥🚩



भावार्थ : सभा को भयतीत देखकर रावण ने हँसकर युक्ति रचकर ये वचन कहे- सिरों का गिरना भी जिसके लिए निरंतर शुभ होता रहा है, उसके लिए मुकुट का गिरना अपशकुन कैसा?॥🚩


➖जय हो प्रभु राम की➖जय हो राजाराम की➖